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Shradha Saburi
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Tuesday 31 January 2017
इक बंजारा इकतारे पर कब से गावे
जीवन है इक डोर, डोर उलझे ही जावे
आसानी से गिरहें खुलती नहीं है
मन वो हठीला है जो फिर भी सुलझावे
राही का तो काम है चलता ही जावे
साइयां वे साइयां वे, सुन-सुन साइयां वे
😇
साईं कृपा से साईं आस एक प्रयास-05.02.2017
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